यहां पर विदा होकर दुल्हन के घर हजाता है दूल्हा, बेटी बनती वारिस, बेटे को नहीं मिलता कोई हक, पुरुष मांग रहें है अधिकार

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बच्चों की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही उठाती हैं, पुरुषों का बच्चों पर उतना अधिकार नहीं होता।

Here the groom goes to the bride's house after leaving, the daughter becomes the heir, the son does not get any right

New Delhi: आज तक आपने यही सुना होगा कि पुरुष महिलाओं पर राज करते है और पुरुष ही खानदान का वारिस कहलाता है। पर एक ऐसा राज्य भी है जहां इसका उल्टा सबकुछ होता है।  यहां पर महिलाओं का राज चलता है। मेघालय की खासी और गारो जनजातियों में महिलाओं का दबदबा है , और  यहां महिलाएं पुरुषो पर राज करती है। इन जनजातियों में शादी होती है तो पुरुष की डोली लड़की के घर जाती है। यहां के पुरुष अब बराबर के अधिकारों की मांग कर रहे हैं। 

बता दें मेघालय का खासी और गारो जनजाति समुदाय सदियों से मातृवंशीय परंपरा को मानता आ रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से यहां पुरुष , महिला-पुरुष बराबरी को लेकर आवाज उठने लगी है।

आपको बता दें कि सिंगखोंगग रिम्पई थेम्माई (एक नया घर) नामक संस्था मेघालय की मातृ सत्तात्मक प्रणाली को खत्म करने के लिए काम कर रही है। इस  संस्था के अधिकारियों के मुताबिक इसका उद्देश्य पुरुषों को महिलाओं के दबदबे से आजाद करना है।

खासी समुदाय में सारे छोटे और बड़े फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं। यहां घर-परिवार और समाज को संभालने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है।इतना ही नहीं परिवार में सरनेम भी महिला सरनेम के आधार पर ही चलता है। बच्चों को उपनाम भी मां के नाम पर दिया जाता है।

 बता दें कि बेटियों के जन्म लेने पर यहां जश्न मनाया जाता है, जबकि भारत के बाकी हिस्सों के उलट बेटे के जन्म पर वहां इतनी खुशी नहीं होती। यहां पर हर परिवार चाहता है कि उनके घर में बेटी पैदा हो, ताकि वंशावली चलती रहे और परिवार को उसका संरक्षक मिलता रहे। 

बता दें कि बच्चों की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही उठाती हैं, पुरुषों का बच्चों पर उतना अधिकार नहीं होता।

करीब 17 लाख आबादी वाली खासी जनजाति के लोग मुख्य तौर पर मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स पर बसे हुए हैं। असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में भी इनकी अच्छी तादाद है। हीं मेघालय में गारो जनजाति की आबादी करीब 30 लाख है।
बता दें कि 20वीं सदी से पहले केरल का नायर समुदाय भी मातृ सत्तात्मक समाज हुआ करता था, जिसे 1925 में कानून के जरिए बदला गया था।