Fact Check: असम की पुरानी तस्वीरें इस्तेमाल कर बनाई गई भड़काऊ फर्जी न्यूज़ कटिंग

Rozanaspokesman

फेक्ट चैक

वायरल हो रही तस्वीरें 2007 की हैं जब अनुसूचित जाति का दर्जा लेने के लिए प्रदर्शन कर रही एक आदिवासी महिला को पीटा गया था।

Fact Check: Inflammatory fake news cutting created using old photographs of Assam

आरएसएफसी (टीम मोहाली)- हाल ही में चले हरमंदिर साहिब विवाद ने कई मोड़ लिए और अब लड़की ने मीडिया के सामने आकर माफी मांगी। इस बीच, विभिन्न दलों द्वारा सोशल मीडिया पर विभिन्न दावे साझा किए गए। इस मामले को लेकर तंज कसता हुआ एक अखबार की कटिंग वायरल की गई जिसमें एक महिला को लात मारते एक व्यक्ति की तस्वीर छपी देखी जा सकती थी। दावा किया गया कि मामला उत्तराखंड के एक मंदिर का है जहां एक पुजारी ने एक दलित लड़की को सिर्फ इसीलिए पीटा क्योंकि वह मंदिर में माथा टेकने आ गई थी।

फ़ेसबुक यूज़र "Harjit Singh Randhawa" ने वायरल कटिंग को शेयर करते हुए लिखा, "मीडिया वालों तुम दूसरे धर्मों पर उंगली उठाने से पहले अपनी हरकतें देखो।"

रोज़ाना स्पोक्समैन ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल हो रही तस्वीरें 2007 की हैं जब अनुसूचित जाति का दर्जा लेने के लिए प्रदर्शन कर रही एक आदिवासी महिला को पीटा गया था।

स्पोक्समैन की पड़ताल;

पड़ताल शुरू करते हुए हमने सबसे पहले इस तस्वीर को गूगल लेंस द्वारा सर्च किया। हमने वायरल तस्वीर को प्रतिष्ठित मीडिया आउटलेट द टेलीग्राफ के एक लेख में अपलोड पाया। यह लेख 26 नवंबर 2007 को प्रकाशित हुआ था।

लेख के अनुसार, नवंबर 2007 में आदिवासी गुवाहाटी, असम में अनुसूचित जाति के दर्जे की मांग को लेकर विरोध कर रहे थे। प्रदर्शन के दौरान तस्वीर में दिख रही लड़की अपने समूह से अलग हो जाती है और उसके बाद कुछ लोगों द्वारा उसे बेरहमी से पीटा जाता है। भीड़ लड़की को घेरती है और उसके कपड़े तक फाड़ दिए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

सर्च करने पर हमें Youtube पर एक वीडियो भी मिला जिसमें इन तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था। यह वीडियो साल 2013 में अपलोड किया गया था।

अब ये जानना भी जरूरी था कि ऐसी घटना उत्तराखंड के हंडोल मंदिर में हुई थी या नहीं। आपको बता दें कि सर्च के दौरान हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली जो वायरल दावे की पुष्टि करती हो।

हमने अपनी पड़ताल में यह भी पाया कि यह कटिंग हर साल इसी दावे के साथ वायरल हो जाती है।

नतीजा- रोज़ाना स्पोक्समैन ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल हो रही तस्वीरें 2007 की हैं जब अनुसूचित जाति का दर्जा लेने के लिए प्रदर्शन कर रही एक आदिवासी महिला को पीटा गया था।