'नाबालिगों को ‘अच्छे- बु रे स्पर्श’ के बारे में बताना ही काफी नहीं', दिल्ली हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

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उच्च न्यायालय ने कमलेश देवी नामक महिला की जमानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां की।

It is not enough to tell minors about 'good and bad touch': Delhi High Court's big comment

 Delhi High Court News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की और कहा कि आज की आभासी दुनिया में नाबालिगों को ‘अच्छे स्पर्श’ और ‘बुरे स्पर्श’ के बारे में बताया जाना ही काफी नहीं है और बच्चों को ‘आभासी स्पर्श’ की उभरती हुई अवधारणा तथा इसके संभावित खतरों के बारे में भी शिक्षित किया जाना जरूरी है।

अदालत ने कहा कि इसमें उन्हें उचित ऑनलाइन व्यवहार सिखाना, हिंसक व्यवहार के संकेतों को पहचानना और गोपनीयता सेटिंग्स और ऑनलाइन सीमाओं के महत्व को समझाना शामिल है।

न्यायाधीश स्वर्ण कांता शर्मा ने सोमवार को कहा, "यह अदालत इस बात पर ध्यान देने के लिए जोर देती है कि आज की आभासी आधुनिक दुनिया में जहां आभासी स्थान भी किशोरों के बीच कथित आभासी स्नेह के मंच बन गए हैं, वे वेश्यावृत्ति के लिए मानव तस्करी और आभासी दुनिया में मौजूद अपराधों के दूसरे पक्ष के संभावित खतरों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं।”

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उच्च न्यायालय ने कमलेश देवी नामक महिला की जमानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां की। महिला पर आरोप है कि उसने अपने बेटे की मदद की जिस पर एक नाबालिग लड़की का अपहरण करने और उसे वेश्यावृत्ति में धकेलने के बाद उसका यौन उत्पीड़न करने का आरोप है।

आरोप है कि राजीव नामक व्यक्ति ने सोशल मीडिया के जरिए 16 वर्षीय लड़की से दोस्ती की और जब वह उससे मिलने गई तो उसका अपहरण कर लिया। लड़की को मध्य प्रदेश ले जाकर कई दिन तक वहीं रखा गया। इसके बाद उस व्यक्ति और अन्य लोगों ने कथित तौर पर उसका यौन उत्पीड़न किया।

यह आरोप भी है कि लड़की को पैसे के बदले 45 वर्षीय व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर किया गया था। किशोरी ने आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्ति विभिन्न पुरुषों को उस परिसर में लाता था जहां उसे कैद किया गया था और उसे यौन संतुष्टि के लिए खुद को इन पुरुषों के सामने पेश करने के लिए मजबूर किया जाता था।

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अदालत ने कहा, “परंपरागत रूप से, नाबालिगों को नुकसान से बचाने के लिए उन्हें शारीरिक तौर पर 'अच्छे स्पर्श' और 'बुरे स्पर्श' के बारे में सिखाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। हालांकि, आज की आभासी दुनिया में, 'आभासी स्पर्श' की अवधारणा को शामिल करके इस शिक्षा का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। नाबालिगों को ऑनलाइन माध्यमों से रूबरू होने को सुरक्षित बनाने और साइबरस्पेस में छुपे संभावित जोखिमों को पहचानने की जरूरत है।”

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